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स्वामी विवेकानन्द: सर्वधर्म समभाव धार्मिक एकता और सहिष्णुता एवम आत्मबल और आत्मनिर्भर के साथ मानवतावादी द्रष्ठकोण के आदर्शो व सिद्धांतो को अपनाने वाला व्यक्तित्व

डॉ प्रमोद कुमार

स्वामी विवेकानंद का नाम भारतीय संस्कृति दर्शन और अध्यात्म की दुनिया में एक अद्वितीय स्थान रखता है। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं। आज दिनांक 12 जनवरी 2025 को सम्पूर्ण विश्व में स्वामी विवेकानन्द जी की 162 वी जन्म वर्षगांठ बड़े धूमधाम से हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। इसलिए 1985 से भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के पर्व के रूप में 12 जनवरी को मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। एक साधारण परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपनी अद्वितीय प्रतिभा साहस और दृढ़ निश्चय से दुनिया को भारतीय संस्कृति और वेदांत दर्शन से परिचित कराया। स्वामी विवेकानंद के जीवन का मुख्य उद्देश्य मानव जाति के उत्थान और आध्यात्मिक जागरण में समर्पित था। उनकी शिक्षाओं और सिद्धांतों में अद्वैत वेदांत का सार है जो हमें यह सिखाता है कि हर व्यक्ति में ईश्वर का वास है और मानवता की सेवा ही सच्ची पूजा है।
नरेंद्रनाथ का पालन-पोषण एक धार्मिक और सांस्कृतिक वातावरण में हुआ। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। माता-पिता से मिले इन दोनों गुणों का प्रभाव नरेंद्रनाथ के व्यक्तित्व में स्पष्ट दिखाई देता था। बाल्यावस्था से ही नरेंद्रनाथ में जिज्ञासा तार्किकता और धार्मिक ग्रंथों के प्रति रुचि थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन संस्थान में हुई। बाद में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। बचपन से ही नरेंद्रनाथ ने वेद उपनिषद भगवद गीता और रामायण जैसे ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। वे तर्कशक्ति और विज्ञान के आधार पर धर्म को समझने में रुचि रखते थे। यही कारण था कि वे अक्सर धर्म ईश्वर और आत्मा के विषय में प्रश्न पूछते रहते थे।

स्वामी विवेकानंद के जीवन में रामकृष्ण परमहंस से भेंट एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। नरेंद्रनाथ हमेशा यह प्रश्न पूछते थे, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?” कई विद्वानों और संतों से मिले उत्तरों से असंतुष्ट होकर जब वे रामकृष्ण परमहंस से मिले, तो उन्हें संतोषजनक उत्तर मिला। रामकृष्ण परमहंस ने न केवल ईश्वर को अनुभव किया था, बल्कि वे ईश्वर को अपने जीवन में महसूस करते थे। उन्होंने नरेंद्रनाथ को बताया कि ईश्वर को जानना और अनुभव करना संभव है। इस भेंट के बाद नरेंद्रनाथ रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गए और उनके जीवन को भारतीय आध्यात्मिकता की सेवा में समर्पित कर दिया। रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं ने नरेंद्रनाथ को मानवता की सेवा के महत्व को समझाया और उन्हें भारत की आध्यात्मिक धरोहर को विश्व मंच पर प्रस्तुत करने की प्रेरणा दी।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मानवता की सेवा और आध्यात्मिक उत्थान था। इस मिशन के माध्यम से उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा, आपदा राहत और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अनेक कार्य किए। आज भी रामकृष्ण मिशन उनके आदर्शों और सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार में लगा हुआ है। स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देशों में भारतीय दर्शन और योग को प्रस्तुत किया। उन्होंने अद्वैत वेदांत, कर्म योग, और भक्ति योग की शिक्षाओं को सरल और व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म में विश्व की समस्याओं का समाधान छिपा हुआ है।

स्वामी विवेकानंद ने धार्मिक एकता और सहिष्णुता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि सभी धर्म सत्य हैं और सभी धर्मों का उद्देश्य एक ही है—मानव का उत्थान। शिकागो में 1893 के विश्व धर्म महासभा में दिए गए उनके ऐतिहासिक भाषण ने न केवल भारत को विश्व मंच पर प्रतिष्ठित किया, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश भी दिया। उनके संबोधन की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” से हुई, जिसने लाखों लोगों का दिल जीत लिया। स्वामी विवेकानंद के आदर्श और सिद्धांत मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
1. आत्मबल और आत्मनिर्भरता
स्वामी विवेकानंद ने आत्मबल और आत्मनिर्भरता पर विशेष जोर दिया। उनका मानना था कि हर व्यक्ति के अंदर असीम शक्ति और संभावनाएं होती हैं। उन्होंने कहा, “उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” यह वाक्य न केवल युवाओं के लिए, बल्कि हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणादायक मंत्र है।
2. शिक्षा का महत्व
स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा को जीवन का आधार माना। उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, मानसिक और आत्मिक विकास करना है। वे कहते थे, “शिक्षा वह है जो हमें जीवन की चुनौतियों से लड़ने के योग्य बनाती है।” उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर भी जोर दिया और समाज में उनकी समान भूमिका का समर्थन किया।
3. धर्म और आध्यात्मिकता
स्वामी विवेकानंद ने धर्म को एक व्यवहारिक जीवनशैली के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि धर्म का उद्देश्य मानवता की सेवा और आत्मा की उन्नति है। उनका मानना था कि धर्म को रूढ़ियों और अंधविश्वासों से मुक्त करना चाहिए और इसे मानव कल्याण का साधन बनाना चाहिए।
4. मानवता की सेवा
स्वामी विवेकानंद ने कहा, “जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं, तब तक मैं उस हर व्यक्ति को विश्वासघाती मानूंगा जो उनके लिए कुछ नहीं करता।” उनके अनुसार, मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है। उन्होंने गरीबों, वंचितों और पिछड़ों के उत्थान के लिए कार्य करने का आह्वान किया।
5. राष्ट्रवाद और सामाजिक सुधार
स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के पुनर्जागरण के लिए कार्य किया। उनका राष्ट्रवाद भारतीयता और सार्वभौमिकता का अद्भुत संगम था। वे जातिवाद, भेदभाव और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ थे। उनका मानना था कि सामाजिक सुधार के बिना राष्ट्र का विकास संभव नहीं है।
स्वामी विवेकानंद के विचार और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी शिक्षाओं ने हमें सिखाया कि आत्मविश्वास, परिश्रम और सेवा के माध्यम से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने युवा पीढ़ी को प्रेरित किया कि वे अपनी शक्ति को पहचानें और समाज के विकास में योगदान दें। आज जब दुनिया विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और नैतिक चुनौतियों का सामना कर रही है, तब स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं हमें एक नई दिशा प्रदान कर सकती हैं। उनके द्वारा दिया गया “मानवता की सेवा” का संदेश हमें सिखाता है कि समाज में एकता और सद्भावना स्थापित करना ही सच्चा धर्म है। स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनके सिद्धांत मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म और अध्यात्म का विश्व मंच पर गौरव बढ़ाया। उनका जीवन प्रेरणा का स्रोत है और उनकी शिक्षाएं आज भी समाज को दिशा प्रदान कर रही हैं। स्वामी विवेकानंद ने न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व को यह सिखाया कि आत्मबल, शिक्षा, और सेवा के माध्यम से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। उनकी जयंती पर हमें उनके आदर्शों और सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम एक बेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकें।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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