देश

राजभवन में मूल संविधान

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

लखनऊ। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल की प्रेरणा से संविधान की मूल प्रति को प्रतिष्ठित किया गया। राज्यपाल और मुख्यमंत्री सहित बड़ी संख्या में लोगों ने इसका अवलोकन किया। इसके माध्यम से एक बार फिर मूल संविधान में अंकित ऐतिहासिक चित्र चर्चा में आ गए। नई पीढ़ी को तो इनका जानकारी भी नहीं है। वस्तुतः भारत की स्वतंत्रता और संविधान निर्माण को अलग करके नहीं देखा जा सकता। दोनों भारत के गौरवशाली अवसर हैं। इससे हम सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। यह तो आप जानते हैं कि आज की तारीख को ही 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ था, लेकिन क्या आपको मालूम है कि मूल संविधान में अनेक चित्र थे। इनका निर्माण नन्दलाल बोस ने किया था। यह हमारे गौरवशाली अतीत की झलक देने वाले थे। गणतंत्र दिवस पर इनकी भी चर्चा होनी चाहिए। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस हमारे दो राष्ट्रीय पर्व हैं। दोनों एक ही सिक्के के दो गौरवशाली पहलू हैं। पन्द्रह अगस्त को देश स्वतंत्र हुआ। इसीलिए भारत का अपना संविधान बनाया गया। 26 जनवरी को संविधान लागू हुआ। भारत ने दिखा दिया कि वह अपना संविधान बनाने और चलाने में समर्थ है। संविधान सभा का विधिवत गठन 9 दिसंबर 1946 में हुआ था। दो वर्ष, ग्यारह महीने और अट्ठारह दिन में संविधान का निर्माण हुआ। संविधान लागू करने के लिए 26 जनवरी की तारीख ही क्यों चुनी गयी? अतः हमें 26 जनवरी के विशेष महत्व के बारे में जान लेना चाहिए। दरअसल 1929 में कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ था। इसमें छब्बीस जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय हुआ। तबसे प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता रहा। आजादी के बाद संविधान 26 नवम्बर 1949 में बनकर तैयार हो गया था। 26 जनवरी तारीख इतिहास में पहले से दर्ज थी, अतः इसी तारीख को संविधान लागू करने का निर्णय लिया गया। स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त हो चुका था, इसलिए संविधान छब्बीस जनवरी 1950 को लागू किया गया और यह दिन हमारा गणतंत्र दिवस बन गया। तीन सौ आठ सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किए थे।

मूल संविधान में प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में दिए गए चित्रों की जानकारी भी नई पीढ़ी को होनी चाहिए। प्रारंभ में अशोक की लाट का चित्र है। प्रस्तावना को सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें मोहनजोदड़ो के घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। भारतीय संस्कृति के प्रतीक कमल का भी चित्र है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील है। इसके बाद वैदिक काल की झलक है। इसमें ऋषि आश्रम में बैठे गुरु-शिष्य और यज्ञशाला है। मूल अधिकार वाले भाग के प्रारंभ में त्रेतायुग है। इसमें भगवान राम रावण को हराकर सीताजी को लंका से वापस ले कर आ रहे हैं। राम धनुष-बाण लेकर आगे बैठे हुए हैं और उनके पीछे लक्ष्मण और सीता हैं। नीति निदेशक सिद्धांतों के प्रारंभ में भगवान श्रीकृष्ण का गीता के उपदेश वाला चित्र है। भारतीय संघ के पांचवें भाग में गौतम बुद्ध की जीवन-यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है।

संघ और उनका राज्य क्षेत्र-1 में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है। आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति है। दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है। ग्यारहवें भागमें मध्यकालीन इतिहास की झलक है। उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखाते हुए एक चित्र को इस भाग में जगह दी गई है और बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है। तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर है। शेषनाग के साथ अन्य देवी देवताओं के चित्र हैं।

भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है। चौदहवें भाग में मुगल स्थापत्य कला है। बादशाह अकबर और उनके दरबारी बैठे हुए हैं। पीछे चंवर डुलाती हुई महिलाएं हैं। पन्द्रहवें भाग में गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी को दिखाया गया है।

सोलहवाँ भाग से ब्रिटिश काल शुरू होता है। टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश सरकार से लड़ते हुए दिखाया गया है। सत्रहवें भाग में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। अगले भाग में महात्मा गांधी की नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र है। गांधी जी के साथ दीनबंधु एंड्रयूज भी हैं। एक हिंदू महिला गांधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम पुरुष हाथ जोड़कर खड़े हैं। उन्नीसवें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे हैं। बीसवें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है। इक्कीसवें भाग में रेगिस्तान के बीच ऊटों काफिला है। बाइसवें भाग में समुद्र है, विशालकाय पानी का जहाज है।

प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम भारत के लोग..’ से होती है। इसका मतलब है कि हम सब महत्वपूर्ण हैं। नागरिक होना गर्व की बात है। सब राष्ट्रीय हित में कार्य करेंगे तो देश मजबूत होगा। इसी प्रकार हमको मूल अधिकारों की भी जानकारी होनी चाहिए। संविधान ने छह मूल अधिकार प्रदान किये हैं जो इस प्रकार हैं- समता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
बयालीसवें संविधान संशोधन से मूल कर्तव्य जोड़े गए। इसमें कहा गया कि प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह- संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करे। स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखे व उनका पालन करें। भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। देश की रक्षा करें और आवाहन किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे। ऐसे ही और भी की कर्तव्य निश्चित किए गए। गणतंत्र दिवस पर इन सभी बातों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए, जिससे हम आदर्श नागरिक के रूप में राष्ट्र के विकास में अपना योगदान कर सकें।

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