शिक्षा

भारतीय ज्ञान परंपरा: तथागत महात्म्य गौतम बुद्ध वैश्विक शांति, समानता, एकता और समरसता के अग्रदूत

डॉ. प्रमोद कुमार

तथागत गौतम बुद्ध केवल एक धार्मिक नेता ही नहीं, बल्कि विश्व के महानतम दार्शनिक, समाज सुधारक और मानवता के मार्गदर्शक थे। उन्होंने अहिंसा, करुणा, समानता, और समरसता के सिद्धांतों पर आधारित एक ऐसा मार्ग प्रस्तुत किया जो न केवल तत्कालीन समाज की समस्याओं का समाधान था, बल्कि आज भी विश्व शांति, सामाजिक समरसता और एकता के लिए प्रासंगिक है। बुद्ध के विचार न केवल एशिया, बल्कि पूरे विश्व में अनगिनत लोगों को प्रेरित कर चुके हैं और आज भी उनकी शिक्षाएँ समाज को सही दिशा प्रदान कर रही हैं।
गौतम बुद्ध ने मनुष्य को आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति के लिए अहिंसा, मध्यम मार्ग, ध्यान, और करुणा का उपदेश दिया। उनका दर्शन केवल धार्मिक सुधार तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने सामाजिक समानता, जातिप्रथा का उन्मूलन, नारी सशक्तिकरण और विश्व शांति के लिए ठोस मार्गदर्शन दिया। उनके विचारों ने भारत ही नहीं, बल्कि चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका, म्यांमार और पश्चिमी देशों तक अपनी गहरी छाप छोड़ी है।

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में एक क्षत्रिय कुल में हुआ था। उनके पिता राजा शुद्धोधन शाक्य गणराज्य के शासक थे और माता महामाया थीं। जन्म के समय उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था। राजमहल में उनका पालन-पोषण सुख-सुविधाओं के बीच हुआ, लेकिन युवा अवस्था में ही उन्होंने जीवन के दुखों को प्रत्यक्ष रूप से देखा, जिससे उनका मन सांसारिक बंधनों से विमुख होने लगा। उन्होंने चार महत्त्वपूर्ण दृश्यों (एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी, एक मृत व्यक्ति, और एक संन्यासी) को देखकर यह समझा कि जीवन नश्वर है और इन दुखों का निवारण आवश्यक है। इसके बाद उन्होंने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े। छः वर्षों तक कठोर तपस्या के बाद, जब उन्हें अनुभव हुआ कि अति-संयम और अति-भोग दोनों ही मार्ग अनुचित हैं, तो उन्होंने “मध्यम मार्ग” को अपनाया। अंततः 35 वर्ष की आयु में बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वे “बुद्ध” अर्थात “जाग्रत” कहलाए। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन को मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया।

वैश्विक शांति के अग्रदूत
गौतम बुद्ध का मुख्य उद्देश्य समस्त मानवता को दुखों से मुक्ति दिलाना था। उन्होंने अहिंसा, करुणा, और शांति को अपने उपदेशों का मूल आधार बनाया। उनके द्वारा प्रतिपादित पंचशील और अष्टांगिक मार्ग आज भी वैश्विक शांति के महत्वपूर्ण सिद्धांत माने जाते हैं।
1. अहिंसा और करुणा का संदेश
गौतम बुद्ध ने यह सिखाया कि प्रत्येक प्राणी के प्रति करुणा और प्रेम रखना आवश्यक है। उन्होंने हिंसा का पूर्ण रूप से विरोध किया और जीवन के हर क्षेत्र में अहिंसा को अपनाने पर बल दिया। यही कारण है कि बौद्ध धर्म के अनुयायी सदैव अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं।
2. युद्ध और संघर्ष का निषेध
बुद्ध ने किसी भी प्रकार के युद्ध, हिंसा और वैमनस्यता का विरोध किया। उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त धार्मिक कट्टरता और सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए प्रयास किए। उनके विचारों से प्रेरित होकर सम्राट अशोक ने हिंसा का मार्ग छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाया और इसे विश्वभर में प्रचारित किया।
3. मैत्री और सह-अस्तित्व
बुद्ध ने समस्त मानवता को “मैत्री भाव” अपनाने की प्रेरणा दी। उनके अनुसार, यदि मनुष्य अपने शत्रु को भी मित्र की भांति देखे, तो संघर्ष समाप्त हो सकता है और समाज में शांति स्थापित हो सकती है।

समानता के सिद्धांत का प्रतिपादन
गौतम बुद्ध का समाज सुधारक रूप विशेष रूप से समानता और समरसता की स्थापना के लिए जाना जाता है।
1. जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का विरोध
बुद्ध ने कहा कि मनुष्य की श्रेष्ठता जन्म से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से निर्धारित होती है। उन्होंने तत्कालीन ब्राह्मणवादी समाज की जातिप्रथा का विरोध किया और सभी को समान बताया। उनके संघ में हर जाति, वर्ग और पृष्ठभूमि के लोग शामिल हो सकते थे।
2. नारी सशक्तिकरण
बुद्ध ने महिलाओं को शिक्षा और धर्म में समान अधिकार दिया। उन्होंने बौद्ध संघ में महिलाओं को भी दीक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान किया।
3. शोषण और आर्थिक विषमता का विरोध
बुद्ध ने भौतिक लालसा को दुखों का मूल कारण बताया और यह सिखाया कि लोभ और लालच छोड़कर मनुष्य समता और संतोष का जीवन जी सकता है।

एकता और समरसता के प्रतीक
बुद्ध ने धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति की विविधताओं के बावजूद एकता और समरसता का संदेश दिया।
1. बौद्ध संघ: समरसता की मिसाल
बुद्ध ने एक ऐसा धर्मसंघ स्थापित किया, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हो सकते थे। उनके संघ में राजा से लेकर दास तक सभी को समान अवसर प्राप्त थे।
2. सार्वभौमिक धर्म का स्वरूप
बौद्ध धर्म केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह चीन, जापान, कोरिया, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम और पश्चिमी देशों में भी लोकप्रिय हुआ।
3. विश्व संस्कृति पर प्रभाव
गौतम बुद्ध के विचारों का प्रभाव विश्व के साहित्य, कला, दर्शन और राजनीति पर भी पड़ा। अनेक देशों ने बौद्ध धर्म को अपनी राष्ट्रीय संस्कृति का हिस्सा बना लिया।

गौतम बुद्ध का जीवन और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने मानवता को अहिंसा, करुणा, समानता और शांति का मार्ग दिखाया। उनका दर्शन केवल धार्मिक सुधार तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने संपूर्ण समाज में समानता और समरसता की स्थापना के लिए मार्गदर्शन दिया। गौतम बुद्ध न केवल एक धार्मिक गुरु थे, बल्कि वे विश्व शांति, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक समृद्धि के प्रेरणास्रोत भी थे। उनके विचारों ने न केवल प्राचीन समाज को प्रभावित किया, बल्कि आज भी वैश्विक स्तर पर शांति और समृद्धि की स्थापना में उनकी शिक्षाएँ मार्गदर्शन कर रही हैं। उनके दर्शन का मूल आधार अहिंसा, करुणा, समता और संतोष है, जो किसी भी समाज को समृद्ध और शांतिपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक तत्व हैं।आज के समय में जब विश्व में हिंसा, असमानता, धार्मिक कट्टरता और सामाजिक भेदभाव की समस्याएँ बढ़ रही हैं, ऐसे में बुद्ध के विचारों को अपनाना नितांत आवश्यक है। उनके बताए गए पंचशील, अष्टांगिक मार्ग और मैत्री भावना को अपनाकर हम न केवल व्यक्तिगत रूप से सुखी हो सकते हैं, बल्कि एक शांतिपूर्ण और समरस समाज की स्थापना भी कर सकते हैं। गौतम बुद्ध वास्तव में वैश्विक शांति, समानता, एकता और समरसता के अग्रदूत थे, और उनके विचार आने वाले युगों तक मानवता का मार्गदर्शन करते रहेंगे। आज जब विश्व आतंकवाद, युद्ध, पर्यावरण संकट और मानसिक तनाव जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, तब बुद्ध के विचारों को अपनाना अधिक प्रासंगिक हो गया है। यदि समस्त मानव समाज बुद्ध के अहिंसा, समता और संतोष के सिद्धांतों का पालन करे, तो विश्व में स्थायी शांति और समृद्धि स्थापित हो सकती है। इसलिए, गौतम बुद्ध केवल अतीत के महान संत नहीं, बल्कि भविष्य के लिए भी एक मार्गदर्शक हैं।


डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा

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