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गुरु वंदना

पं० रामजस त्रिपाठी "नारायण"

प्रकाशित कृति – नारायण दोहावली
कृतिकार- पं० रामजस त्रिपाठी “नारायण”
वंदना खंड- गुरु वंदना (पृष्ठ संख्या -२०) धारावाहिक प्रेषण

बंदउ गुरु पद रज विमल, कर्म -धर्म सुख धाम।
शशि स्वरूप तामस हरण, सरल सहज अभिराम।।

प्रथम पूज्य गुरु श्‍याम धर, लरछुट सीखड़ धाम ।
जिनकी कृपा विशेष से, है नारायण नाम ॥

जो सत -चित -आनंद हैं, गुरु द्वितीय सुख धाम ।
मानस का सद्ज्ञान दे, दिखलाए सिय राम॥

चित्रकूट सुखधाम में, गुरु तृतीय का वास ।
शांत सरल सौहार्द मय, सहज सरस आभास ॥

अलंकार प्राचीनतम, गुरुवर श्री का धाम ।
मातु जानकी साथ में, बसें लखन श्रीराम ॥

रोहिणीश गुरुदेव जी, करते यहाँ प्रकाश।
उनके दर्शन मात्र से, कलि कटुता का नाश।।

गुरु की कृपा विशेष से, मिला नारायण नाम।
ध्वज फहरा साहित्य में, अंतर है अभिराम।।

शांत चित्त आनंद मय, गुरु का रूप स्वरूप।
तेज ओज प्रतिमूर्ति सह, सौम्य सहज गुण भूप।।

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